MSDSU BA 1st year Political Science Model Paper 2022

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पूना में कालरा फैल जाने से प्रस्तावित सम्मेलन का स्थान बदलकर बम्बई (मुम्बई) कर दिया गया और 28, 29 और 30 दिसम्बर, 1885 ई० को बम्बई (मुम्बई) के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कालेज के हाल में भारत के विभिन्न प्रान्तों से आये हुए 72 प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुआ, जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई।

उदारवादियों और उग्रवादियों में अन्तर । अथवा उदारवादियों एवं उग्रवादियों के बीच अन्तर। उत्तर – उदारवाद एवं उग्रवाद में निम्नलिखित अन्तर है

दोनों विचारधाराओं का मौलिक उद्देश्य एक था-स्वशासन की प्राप्ति। परन्तु स्वशासन से दोनों का आशय भिन्न था। उदारवादी ब्रिटेन की छत्रच्छाया में प्रतिनिध्यात्मक या संसदीय संस्थाओं की स्थापना करना चाहते थे। वे क्रमिक सुधारों से सन्तुष्ट थे, जबकि उग्रवादी भारतीयता पर आधारित स्वराज्य के पक्ष में थे। तिलक ने कहा था, “मैं अपने घर की चाभी अपने घर में लेना चाहता हूँ सिर्फ परदेशियों को घर से निकालना ही नहीं चाहता।”

  • ब्रिटेन की न्यायप्रियता, प्रजातान्त्रिक भावनाओं में उदारवादियों का अटूट विश्वास था।
  • उग्रवादी उसे पूर्णतया धोखा समझते थे। उन्हें अंग्रेजों की नीयत और उदारता में जरा भी विश्वास नहीं था।
  • उदारवादी ब्रिटेन और भारत के हित में किसी प्रकार का विरोध नहीं समझते थे। इसके विपरीत उग्रवादियों का कहना था कि अंग्रेजों का हित भारत की उन्नति के विपरीत पड़ता है। वे ब्रिटिश साम्राज्यवाद को भौतिक और नैतिक दृष्टि से देश के लिए विनाशकारी समझते थे।
  • उदारवादी केवल संवैधानिक तरीके में विश्वास करते थे, वे अपनी माँगों को मनवाने के लिए प्रार्थना पत्र भेजने, भाषण देने, लेख लिखने और शिष्टमण्डल भेजने के तरीकों का प्रयोग करते थे।
  • उग्रवादी संवैधानिक तरीकों में विश्वास नहीं करते थे। वे अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सीधी कार्यवाही और उग्र राजनीतिक आन्दोलन की नीति में विश्वास करते थे। वे स्वावलम्बन, संगठन और संघर्ष की आवश्यकता पर जोर देते थे। जैसा कि लाला लाजपतराय ने कहा था, “हमारा उद्देश्य आत्मनिर्भरता है भिक्षा माँगना नहीं।”

सूरत विभाजन (1907)

उत्तर-1907 ई० के पूरे वर्ष आपसी तर्क-वितर्क चलता रहा और दोनों दल 1905 और 1906 ई० के कांग्रेस अधिवेशनों में दिखायी गयी समझौते की भावना को काटने का प्रयत्न करते रहे। इसके बाद प्रत्येक चरण में दोनों दलों के आपसी मतभेद उभरने लगे। 1907 ई० की कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में होना था परन्तु स्वागत समिति के सदस्यों में अध्यक्ष के चुनाव पर मतभेद हो गया। नरम दल के नेता जिनमें फीरोजशाह मेहता, दीन शाह वाचा तथा गोखले थे, ने अपने प्रभाव का प्रयोग कर अधिवेशन का स्थान नागपुर से सूरत में परिवर्तित करा दिया क्योंकि वहाँ की स्वागत समिति फीरोजशाह मेहता के प्रभाव में थी। एक अन्य लाभ यह था कि तिलक अब कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के अपात्र हो गये। कांग्रेस के संविधान के अनुसार प्रावधान यह था कि कांग्रेस का अध्यक्ष अधिवेशन बुलाने वाले प्रान्त से नहीं होना चाहिए और सूरत उसी प्रान्त में था जहाँ से तिलक आये थे अर्थात् बम्बई (मुम्बई)।

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दिसम्बर, 1907 ई० के प्रारम्भिक दिनों में अफवाह यह फैल गयी कि कांग्रेस के अधिवेशन में स्वराज, स्वदेशी, बहिष्कार तथा राष्ट्रीय शिक्षा आदि पर प्रस्ताव नहीं रखे जायेंगे। झगड़ा पुनः अध्यक्ष के

नाम पर हुआ। उग्रवादी चाहते थे कि अध्यक्ष लाजपतराय हों जिन्हें अभी-अभी देश निर्वासन से मुक्त मिली थी। दूसरी ओर नरम दल के लोग चाहते थे कि रासबिहारी घोष अध्यक्ष चुने जायँ। लाला लाजपतराय ने बुद्धिमत्ता दर्शाते हुए अपना नाम वापस ले लिया। तिलक ने अपनी ओर से एक समझौते का प्रस्ताव रखा वे सुरेन्द्र नाथ बनर्जी से मिले और उन्हें विश्वास दिलाया कि वे घोष के नाम का विरोध नहीं करेंगे। यदि उनके स्वराज, स्वदेशी बहिष्कार तथा राष्ट्रीय शिक्षा पर प्रस्ताव सूरत के अधिवेशन में समर्थित कर दिये जायँ। तिलक ने मालवीय जी से भी मिलने की इच्छा प्रकट की परन्तु उन्होंने मिलने से इन्कार कर दिया। अब यह स्पष्ट था कि नरम दल वाले किसी प्रकार के समझौते करने को उद्यत नहीं थे। MSDSU BA 1st year Political Science

उदारवादियों एवं उग्रवादियों के बीच अन्तर ब्रिटेन की न्यायप्रियता, प्रजातान्त्रिक भावनाओं में उदारवादियों का अटूट विश्वास था।
सूरत विभाजन (1907) 1907 ई० की कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में होना था परन्तु स्वागत समिति के सदस्यों में अध्यक्ष के चुनाव पर मतभेद हो गया।

21 दिसम्बर, 1907 ई० को स्वागत समिति के प्रधान मालवीय जी ने तिलक द्वारा दिये गये स्थगन प्रस्ताव के नोटिस की पूर्णतया अनदेखी करते हुए यह घोषणा कर दी कि रास बिहारी घोष कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिए गये हैं। तिलक तुरन्त खड़े हो गये और उन्होंने प्रधान जी से प्रस्ताव रखने की अनुमति माँगी। प्रधान जी ने इस प्रस्ताव को अव्यवस्थित (out of order) कहकर समाप्त कर दिया। गरमागर्मी हो गयी, शोर मच गया और इसके उपरान्त हुल्लड़ मच गया। कुर्सियाँ उठाकर फेंकी गयीं। कहते हैं कि फीरोजशाह मेहता और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी को जूते भी लगे। MSDSU BA 1st year Political  प्रधान जी ने अधिवेशन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया। MA Political Science Model Paper 2022

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में उग्रवाद के उदय के क्या कारण थे?

उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में उग्रवाद के उदय के निम्नलिखित कारण थे- 1. भारतीय कटुता और अंग्रेजों का अहंकारयुक्त व्यवहार-उग्र राष्ट्रवादिता के उदय का कारण था – अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति अहंकारयुक्त व्यवहार और आंग्ल-भारतीय पत्रों का भारत विरोधी दृष्टिकोण और प्रचार । दिन-प्रतिदिन के जीवन में भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार ही किया जाता था, अनेक बार ब्रिटिश सैनिकों और अन्य व्यक्तियों ने भारतीयों के साथ घातक मारपीट की और कई बार आहत व्यक्ति मर भी गये, लेकिन अंग्रेज अधिकारी दण्ड से बच गये या उन्हें बिल्कुल साधारण-सा दण्ड दिया गया। लॉर्ड रोनाल्ड अपनी पुस्तक में इस प्रकार की दो घटनाओं के उदाहरण देते हैं। इन अपराधों और हत्याओं से भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात यह थी कि आंग्ल-भारतीय समाचार-पत्रों द्वारा इस प्रकार के व्यवहारों को प्रोत्साहित किया जाता था।  BA 1st year Political Science

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लाहौर से प्रकाशित आंग्ल-भारतीय दैनिक ‘दी सिविल एण्ड मिलिट्री गजट’ तो भारतीयों को जी खोलकर गालियाँ देता था और पढ़े-लिखे भारतीयों को ‘बलबलाते बी० ए०, वर्णसंकर बी० ए०, गुलाम, दास-जाति और कलंकी जाति’ जैसे अपमानजनक शब्दों से सम्बोधित करता था। इस अपमानजनक व्यवहार की भारतीयों में प्रतिक्रिया होना नितान्त स्वाभाविक था। ( 2 ) विदेशों में भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार- ब्रिटिश उपनिवेशों विशेषकर नेपाल और दक्षिणी अफ्रीका में भारतीयों के साथ किया जाने वाला दुर्व्यवहार असन्तोष का एक अन्य कारण था। इस दुर्व्यवहार के कारण 1903 ई० में दक्षिणी अफ्रीका से लौटकर डॉ० बी० एस० मुंजे ने दुःखपूर्वक कहा था कि “हमारे शासक इस बात पर विश्वास नहीं करते कि हम भी मनुष्य हैं।” भारतीयों के द्वारा यह अनुभव किया गया कि उन भारतीयों के साथ भारत राष्ट्र की पराधीनता के कारण ही दुर्व्यवहार किया जा रहा है और इसकी समाप्ति का एकमात्र उपाय भारत के लिए स्वतन्त्रता की प्राप्ति है।

पश्चिम के क्रान्तिकारी विचारों का प्रभाव-जब भारतीयों ने अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य शिक्षा पद्धति के माध्यम से मैजिनी, वर्क, गैरीबाल्डी और वाशिंगटन के स्वतन्त्रता के लिए प्रेरित करने

FAQ

सूरत विभाजन (1907)

1907 ई० की कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में होना था परन्तु स्वागत समिति के सदस्यों में अध्यक्ष के चुनाव पर मतभेद हो गया। नरम दल के नेता जिनमें फीरोजशाह मेहता, दीन शाह वाचा तथा गोखले थे,

राष्ट्रीय आन्दोलन में उग्रवाद

भारतीय कटुता और अंग्रेजों का अहंकारयुक्त व्यवहार-उग्र राष्ट्रवादिता के उदय का कारण था

उग्रवादी भारतीयता

जबकि उग्रवादी भारतीयता पर आधारित स्वराज्य के पक्ष में थे। तिलक ने कहा था, “मैं अपने घर की चाभी अपने घर में लेना चाहता हूँ सिर्फ परदेशियों को घर से निकालना ही नहीं चाहता।

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